Revolution of 1857 in Rajasthan
Revolution of 1857 in Rajasthan ( राजस्थान मे 1857 की क्रांति ) –
इस क्रांति से पूर्व घटित प्रमुख घटनाएं :-
1798 ई. में गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली की “सहायक संधि प्रथा” का प्रचलन किया।
इस संधि की प्रमुख शर्तें :-
1. 500 की अंग्रेजी सेना देशी राज्य की राजधानी में नियुक्त की जाएगी।
2. राजा की राजधानी में एक अंग्रेजी पोलिटिकल एजेंट की नियुक्ति होगी।
3. उपरोक्त सेना व पोलिटिकल एजेंट का व्यय भार राजा द्वारा वहन किया जाएगा।
4. देशी राज्य की विदेश नीति पर अंग्रेजों का नियंत्रण स्थापित होगा।
5. राजा द्वारा सहायता के बदले अंग्रेजों को राज्य के कुल राजस्व का 1/3 भाग दिया जाएगा।
- भारत में सहायक संधि स्वीकार करने वाला प्रथम राज्य – हैदराबाद (1790, निजाम अली)
- यह संधि करने वाली राजस्थान की प्रथम रियासत – भरतपुर (29 सितंबर 1803, नवम्बर 1805 रणजीत सिंह)
- यह संधि करने वाली राजस्थान की दूसरी रियासत – अलवर (28 नवंबर 1803, बख्तावर सिंह)
- राजस्थान में विस्तृत / आक्रामक व रक्षात्मक सहायक सन्धि करने वाली प्रथम रियासत – अलवर (14 नवंबर 1803, बख्तावर सिंह)।
- जयपुर नरेश महाराजा सवाई प्रतापसिंह ने 12 दिसम्बर 1803 को ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ संधि की किन्तु 1805 मे अंग्रेज़ो द्वारा संधि को भंग कर दिया गया । दुबारा 2 अप्रैल 1818 को महाराजा जगतसिंह ने कंपनी के साथ संधि की ।
- जोधपुर नरेश महाराजा भीम सिंह ने 22 दिसम्बर 1803 को कंपनी के साथ संधि की । भीम सिंह की मृत्यु होने पर यह संधि रद्द हो गयी । महाराजा मानसिंह ने 6 जनवरी 1818 को पुनः कंपनी के साथ संधि की । महाराजा ने कंपनी को 1,08,000 रुपए वार्षिक खिराज देना स्वीकार किया ।
- गवर्नर जनरल लॉर्ड हेस्टिंग्स ने 1817 ई. में अधीनस्थ पृथ्थकरण की नीति का प्रचलन किया।
इस नीति के तहत सन्धि करने वाली रियासतें निम्नलिखित थी
अधीनस्थ संधि के तहत 1832 मे राजपूताना रेजीडेन्सी की स्थापना की गयी । इसका मुख्य अधिकारी एजीजी था । राजस्थान का प्रथम एजीजी जनरल लॉकेट था जबकि 1857 की क्रांति के समय एजीजी जार्ज पेट्रीक लारेंस था ।
गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने 1848 ई. में हड़प नीति का प्रचलन किया।
इस नीति के अन्य नाम – व्यपगत की नीति, गोद – निषेध नीति, लेप्स ऑफ डॉक्टराइन
इस नीति से हड़पी गयी प्रथम रियासत – सतारा (शासक – अप्पा साहिब ), (महाराष्ट्र – 1948)
नोट – राजस्थान की उदयपुर रियासत भी इस अधिनियम के आंशिक प्रभाव में आई थी।
Revolution of 1857 in Rajasthan : क्रांति के समय पोलिटिकल एजेंट :-
- जोधपुर – मेकमोसन
- जयपुर – ईडन
- भरतपुर – मोरिसन / निकसन
- कोटा – बर्टन
- सिरोही – J. D. हॉल
- उदयपुर – शावर्स
Revolution of 1857 in Rajasthan : क्रांति के समय राजस्थान में अंग्रेजों की 6 सैनिक छावनियां थी –
- नसीराबाद छावनी (अजमेर) – 15वीं, 30वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री सैनिक टुकड़ी नियुक्त थी।
- ब्यावर छावनी (अजमेर) – मेर रेजिमेंट नियुक्त थी।
- खेरवाड़ा छावनी (उदयपुर) – मेवाड़ भील कोर नियुक्त थी।
- एरिनपुरा छावनी (पाली) – जोधपुर लीजियन नियुक्त थी
- देवली छावनी (टोंक) – कोटा कण्टिंजेन्ट नियुक्त थी।
- नीमच छावनी (MP)
● ब्यावर ओर खेरवाड़ा सैनिक छावनीयों ने इस क्रांति में भाग नही लिया।
● नसीराबाद सबसे बड़ी एवं पुरानी तथा ब्यावर सबसे छोटी एवं नवीन छावनी थी।
● नीमच छावनी भौगोलिक रूप से मध्यप्रदेश में स्थित थी परंतु इसका प्रशासनिक दायित्व उदयपुर के पॉलिटिकल एजेंट के अधीन था।
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Revolution of 1857 in Rajasthan : क्रांति की रूपरेखा :-
भारतीय गवर्नर जनरल लार्ड केनिंग ने क्रांति से पूर्व आशंका व्यक्त की – हमें यह कदाचित नहीं भूलना चाहिए कि भारत के इस शांत आकाश में कभी भी एक छोटी सी बदली उत्पन्न हो सकती है जिसका आकार पहले तो मनुष्य की हथेली से बड़ा नहीं होगा किन्तु जो उत्तरोत्तर विराट रूप धारण करके अंत में वृष्टि विस्फोट के द्वारा हमारी बर्बादी का कारण बन सकती है ।
● इस क्रांति की रूप रेखा कानपुर के शासक नानासाहेब के मित्र अजीमुल्ला खां तथा सतारा के शासक रंगोजी बापू के द्वारा लंदन में बनाई गई थी, जिसे नेपाल से क्रियान्वित किया गया था।
● इस योजना के अनुसार 31 मई 1857 को सामूहिक विद्रोह का फैसला लिया गया था जिसके लिए चौकीदारों और सैनिकों को प्रचार की जिम्मेदारी दी गई थी कमल का फूल व रोटी को प्रचार चिन्ह बनाया था परंतु इसी बीच 29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी में मंगल पांडे द्वारा चर्बी वाले कारतूसों के विरोध में मेजर ह्यूसन तथा लेफ्टीनेंट बाग की हत्या कर दी गई थी यह इस क्रांति का पहला विस्फोट था।
● इस घटना के कारण 8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी गई। मंगल पांडे इस क्रांति का पहला शहीद था।
● क्रांति की विधिवत शुरुआत 10 मई 1857 को मेरठ से हुई थी।
◆ क्रांति के समय प्रशासनिक स्वरूप :-
• ब्रिटेन की महारानी – विक्टोरिया
• ब्रिटेन का प्रधानमंत्री – लॉर्ड पॉमस्टन
• भारत का गवर्नर जनरल – लॉर्ड कैनिग
• राजस्थान का AGG – पैट्रिक लॉरेन्स
• AGG का कार्यालय – 1832 में अजमेर स्थापित, एवं 1845 में माउंट आबू स्थानांतरित
Revolution of 1857 in Rajasthan : 1857 की क्रांति के समय राजस्थान के मुख्य राजा व पॉलिटिकल एजेंट
- बीकानेर के राजा सरदार सिंह ने 1857 के विद्रोह मे अपनी सेना लेकर राज्य से बाहर बाडलु गाँव (हिसार) तक गया बदले मे अंग्रेज़ो ने 41 परगने दिये ।
- मारवाड़ के राजा तख्तसिंह व पॉलिटिकल एजेंट मेक मोसन था ।
- मेवाड़ के राजा स्वरूप सिंह व पॉलिटिकल एजेंट मेजर शावर्स था । राजस्थान मे सर्वप्रथम स्वरूप सिंह ने ही अंग्रेज़ो की सहायता की थी ।
- जयपुर के राजा रामसिंह द्वितीय ने अंग्रेज़ो की तन-मन-धन से सहायता के बदले अंग्रेज़ो ने इनको सितार-ए-हिन्द की उपाधि व कोटपुतली परगना दिया । यहा का पॉलिटिकल एजेंट कर्नल ईडन था ।
- अलवर के राजा विनयसिंह ने भी अपनी सेना अंग्रेज़ो की सहायता के लिए बाहर भेजने का प्रयास किया ।
- भरतपुर के राजा जसवंत सिंह थे और पॉलिटिकल एजेंट मॉरिसन था ।
- धोलपुर के राजा भगवंत सिंह थे ।
- करौली के राजा मदनपाल थे ।
- कोटा के राजा राव रामसिंह व पॉलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन था ।
- 1857 की क्रांति का प्रतीक चिन्ह के रूप मे “कमल व रोटी / चपाती को चुना गया ।
- राजस्थान मे 1857 की क्रांति की शुरुआत नसीराबाद से तथा अंत सीकर मे हुआ ।
Revolution of 1857 in Rajasthan : राजस्थान में क्रांति के प्रमुख स्थल :-
1. नसीराबाद में क्रांति :-
● 28 मई 1857 को यह राजस्थान में क्रांति का प्रथम स्थल माना जाता है।
● मेरठ में हुई क्रांति की सूचना 19 मई को आबू में पहुंची थी अतः पैट्रिक लॉरेंस ने सभी रियासतों व छावनीयों को कठोर निर्देश दिए थे।
● नसीराबाद में नेतृत्वकर्ता – बख्तावर सिंह
● तत्कालीन अंग्रेज अधिकारी – प्रिचार्ड
● बख्तावर सिंह ने प्रिचार्ड से पूछा था कि “हमारे साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया जा रहा है क्या हम विद्रोही हैं”
● नसीराबाद में निम्न दो अधिकारियों की हत्या कर दी गई – स्पोरटिस वुड, न्यूबरी
● जोधपुर महाराजा तख्त सिंह ने नसीराबाद छावनी के अंग्रेजों को शरण दी थी।
● नसीराबाद से जोधपुर जाते समय कर्नल पेन्नी की मृत्यु हुई एवं इस छावनी के विद्रोही सैनिक भरतपुर रियासत से होते हुए दिल्ली पहुँचे।
2. भरतपुर में क्रांति :- 31 मई 1857
● तत्कालीन शासक – जसवंत सिंह
● शासक के अल्पायु होने के कारण मोरीसन भरतपुर का प्रशासक बना। इस रियासत में नसीराबाद छावनी के सैनिकों द्वारा क्रांति की चेतना उत्पन्न की गई।
● भरतपुर में गुर्जर और मेव जाति द्वारा विद्रोह किया गया। मोरिसन ने आगरा के दुर्ग में शरण ली।
3. नीमच में क्रांति :- 3 जून 1857
● इस छावनी में नियुक्त प्रमुख सैनिक टुकड़ियां :-
● 7 वीं ग्वालियर इन्फेंट्री
● 72 वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री
● बंगाल नेटिव हॉर्स आर्टिलरी
● छावनी में अंग्रेज अधिकारी – कर्नल एबॉट
● नेतृत्वकर्ता – मोहम्मद अली बेग व हीरा सिंह
● जब एबॉट ने भारतीय सैनिकों को स्वामी भक्ति की शपथ दिलाई तब मोहम्मद अली बेग ने पूछा था कि “जब अंग्रेजों ने अपनी शपथ का पालन नहीं किया तो हम भी ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं है।”
● नीमच से भागे अंग्रेज परिवार के 40 सदस्यों ने चित्तौड़गढ़ के डूंगला गांव में रुगा राम किसान के घर शरण ली थी एवं मेवाड़ के महाराणा स्वरूप सिंह ने इन अंग्रेजों को पिछोला झील के जगमन्दिर में ठहराया था।
● मेवाड़ के पॉलिटिकल एजेंट शॉवर्स के लिए शाहपुरा के लक्ष्मण सिंह ने किले के दरवाजे नही खोले थे।
4. टोंक में क्रांति :- 10 जून 1857
● तत्कालीन नवाब वजीरूद्योला था इसने अंग्रेजों का साथ दिया अतः इसे ईसाइराजा भी कहा गया। टोंक की प्रजा ने क्रांतिकारियों का साथ दिया। इस रियासत में सर्वप्रथम देवली सैनिक छावनी में क्रांति हुई (5 जून) जो 10 जून तक संपूर्ण रियासत में फैल गई थी।
● नेतृत्वकर्ता – मीर आलम खां, नासिर मोहम्मद
● नासिर मोहम्मद का साथ तात्या टोपे ने दिया था। मुंशी जीवनराम की डायरी के अनुसार टोंक से 600 मुजाहिद जफर की सहायता हेतु दिल्ली पहुंचे थे।
● मोहम्मद मुजीब के ग्रंथ “आजमाइश” के अनुसार टोंक की महिलाओं ने भी इस क्रांति में भाग लिया था।
5. अलवर में क्रांति :- 11 जुलाई 1857
● तत्कालीन शासक बन्ने सिंह ने क्रांति के समय अंग्रेजों की सहायता की एवं बन्ने सिंह ने आगरा के लाल किले में अंग्रेजों की सहायता हेतु सेना भेजी थी।
6. अजमेर में क्रांति :- 9 अगस्त 1857
● यहां क्रांतिकारियों ने अपने 50 से अधिक साथियों को मुक्त करवाया।
● जोधपुर महाराजा तख्तसिंह ने कुशलसिंह सिंघवी के नेतृत्व में राजकीय सेना को अजमेर भेजा। कर्नल डिक्सन ने ब्यावर से मेर रेजिमेंट को अजमेर भेजा।
7. एरिनपुरा (पाली) में क्रांति :- 21 अगस्त 1857
● छावनी का अंग्रेज अधिकारी – अलेक्जेंडर
● नेतृत्वकर्ता – शीतल प्रसाद, मोती खां, तिलक राम
● इन क्रांतिकारियों का साथ आसोप ठिकाने के ठाकुर शिवनाथ सिंह ने दिया।
● इस छावनी के सैनिकों का नारा – “चलो दिल्ली मारो फिरंगी”
8. आउवा में क्रांति :- सितंबर 1857
● आउवा के तत्कालीन जागीरदार कुशाल सिंह
● तत्कालीन जोधपुर महाराजा तख्त सिंह
● रेख (कर) के प्रश्न को लेकर कुशाल सिंह और तख्त सिंह के बीच मनमुटाव था। अंग्रेजों ने महाराजा तख्त सिंह का साथ दिया।
● कुशाल सिंह के नेतृत्व में क्रांतिकारियों ने जोधपुर की राजकीय सेना और अंग्रेज सेना को संयुक्त रूप से निम्न दो युद्ध में पराजित किया
(i) बिथोड़ा का युद्ध :- पाली में 8 सितंबर 1857
● इस युद्ध में क्रांतिकारियों ने जोधपुर राज्य व अंग्रेजी सेना को पराजित किया। इस युद्ध में अनार सिंह मारा गया।
(ii) चेलावास का युद्ध :- 18 सितंबर 1857 पाली
● इस युद्ध में क्रांतिकारियों के विरुद्ध अंग्रेजी सेना का नेतृत्व पैट्रिक लॉरेंस ने तथा जोधपुर की सेना का नेतृत्व मेक मोसन ने किया इस युद्ध मे मेक मोसन मारा गया तथा इसका सिर काट कर आउवा किले के मुख्य द्वार पर लटकाया गया। क्रांतिकारी विजयी हुए।
● जनवरी 1858 में अंग्रेज अधिकारी होम्स ने आउवा के किले को घेर लिया और उस पर विजय प्राप्त कर ली। होम्स ने आउवा में क्रांति का दमन किया तथा सुगाली माता की मूर्ति आउवा से अजमेर ले गया जो वर्तमान में पाली के बांगड़ संग्रहालय में सुरक्षित है। यह आउवा के क्रांतिकारियों की प्रेरणा स्रोत थी। सुगाली माता की धातु की मूर्ति है जिसके 10 सिर और 54 हाथ बने है।
● 1860 ई. में कुशाल सिंह ने नीमच सैनिक छावनी में आत्मसमर्पण किया इनके अपराधों की जांच हेतु टेलर आयोग गठित किया गया जिसकी रिपोर्ट के आधार पर कुशाल सिंह को अपराध मुक्त घोषित कर दिया गया तथा इनकी 1864 में उदयपुर में मृत्यु हुई
9. कोटा में क्रांति :- 15 अक्टूबर 1857
● नेतृत्वकर्ता – लाला हरदयाल भटनागर (कोटा का प्रशासक), रिसालदार मेहराब खाँ (कोटा का सैनिक अधिकारी)
● विद्रोह करने वाली सैनिक टुकड़िया – नारायणी पलटन, भवानी पलटन
● क्रांतिकारियों ने कोटा के राजा रामसिंह द्वितीय उसी के महल में बंदी बनाया। तथा क्रांतिकारियों ने कोटा शहर में समानांतर सरकार का गठन किया।
● सर्वाधिक लंबे समय तक चलने वाली क्रांति कोटा की क्रांति मानी जाती है। कोटा में राजस्थान की सर्वाधिक व्यवस्थित क्रांति हुई। यहां क्रांतिकारियों ने पांच अंग्रेजों की हत्या की – बर्टन, फ्रैंक, ऑर्थर, डॉ सैडलर, डॉ कॉटम
● क्रांतिकारियों ने कोटा के पोलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन का सिर काटकर कोटा की गलियों में घुमाया था। अंग्रेज अधिकारी रॉबर्ट्स ने करौली महाराजा मदनपाल सिंह की सहायता से 30 मार्च 1858 को पुनः कोटा पर अधिकार कर लिया।
● कोटा महाराजा रामसिंह द्वितीय के तोपों की सलामी संख्या 17 से घटाकर 13 कर दी। तथा करौली के मदन पाल सिंह की सलामी संख्या 13 से बढ़ाकर 17 कर दी थी। एवं मदनपाल सिंह को ग्रैण्ड कमांडर ऑफ इंडिया (GCI) का सम्मान भी दिया गया।
10. धौलपुर में क्रांति :- 27 अक्टूबर 1857
● तत्कालीन शासक – भगवंत सिंह
● नेतृत्वकर्ता – गुर्जर देवा, रामचंद्र
● ग्वालियर से 2 हजार क्रांतिकारियों ने धौलपुर में प्रवेश किया तथा लगभग 2 महीने तक धौलपुर पर अधिकार रखा।
● पटियाला से 3 हजार सैनिकों की सिख रेजिमेंट ने धौलपुर में क्रांति का दमन किया अतः यह एकमात्र ऐसी रियासत थी जहाँ क्रांति प्रारम्भ करने वाले तथा दमन करने वाले दोनों ही बाहरी थे।
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Revolution of 1857 in Rajasthan : क्रांति में अन्य शासक व उनकी भूमिका :-
1. बीकानेर :-
● यहाँ के शासक सरदार सिंह ने अंग्रेजों का साथ दिया था। सरदार सिंह ने राजपुताना से बाहर जाकर क्रांति का दमन करने में अंग्रेजों का साथ दिया। राजपुताना से बाहर जाकर दमन करने वाले ये एकमात्र राजपूत शासक थे।
अंग्रेजों ने सरदार सिंह को टिब्बी परगने के 41 गाँव भेंट में दिए थे।
● तात्या टोपे के 600 सैनिकों ने सरदार सिंह के समक्ष आत्म समर्पण किया था।
2. जयपुर :-
● यहाँ के शासक रामसिंह II ने अंग्रेजों का साथ दिया अतः अंग्रेजों ने इनको सितार-ए-हिन्द की उपाधि और कोटपुतली की जागीर प्रदान की।
● जयपुर एकमात्र ऐसी रियासत थी जिसके राजा एवं प्रजा दोनों ने अंग्रेजों का साथ दिया था।
3. जैसलमेर :– यहाँ के महारावल रणजीत सिंह ने अंग्रेजों का साथ दिया। अतः अंग्रेजों ने इन्हें 2000/- रुपये की भेंट प्रदान की।
4. बूंदी में क्रांति :-
● यहाँ के शासक रामसिंह ने अप्रत्यक्ष रूप से क्रांतिकारियों की सहायता की।
Revolution of 1857 in Rajasthan : क्रांति में योगदान देने वाले प्रमुख व्यक्ति :-
1. अमरचन्द बाठिया :-
● ये बीकानेर के निवासी थे तथा ग्वालियर में व्यापार करते थे।
● इस क्रांति के समय इन्होंने रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे की सहायता की थी। अतः ग्वालियर रियासत द्वारा इन्हें ग्वालियर के सर्राफा बाजार में फाँसी दे दी गई।
● इनके उपनाम – राजस्थान का प्रथम शहीद, राजस्थान का मंगल पांडे, 1857 की क्रांति का भामाशाह
2. तात्या टोपे :-
● जन्म – येवला गांव, महाराष्ट्र, कार्यक्षेत्र – ग्वालियर
● इनका मूल नाम – रामचंद्र पांडुरंग
● तात्या टोपे ने क्रांति के समय राजस्थान में दो बार प्रवेश किया। –
(i) प्रथम बार :- 9 अगस्त 1858, भीलवाड़ा मार्ग से
● 9 अगस्त 1858 को कोठारी नदी के किनारे कुवाड़ा के युद्ध मे रॉबर्ट्स की सेना से तात्या टोपे पराजित हुवा।
● तात्या टोपे ने झालावाड़ पर अधिकार किया।
(ii) द्वितीय बार :- 11 दिसम्बर 1858, बांसवाड़ा मार्ग से प्रवेश
● तात्या टोपे ने बांसवाड़ा के शासक लक्ष्मण सिंह को पराजित करके बांसवाड़ा पर अधिकार किया।
● जैसलमेर रियासत को छोड़कर राजपूताने की सभी रियासतों में सहायता प्राप्त करने हेतु गया था परंतु असफल रहा।
● सीकर का युद्ध :- जनवरी 1859, – इस युद्ध मे अंग्रेज अधिकारी होम्स की सेना से पराजित हुवा। राव राजा भैरों सिंह ने तात्या टोपे को सीकर में प्रवेश करने से रोका था।
● सीकर से वापस लौटते समय तात्या टोपे को कोठारिया के जोधसिंह ने शरण दी थी अतः अंग्रेजों ने जोधसिंह को फांसी की सजा दी थी।
● मध्यप्रदेश के नरवर के जागीरदार मानसिंह नरुका के विश्वासघात के कारण 7 अप्रैल 1859 को तात्या टोपे को बंदी बनाया गया।
● 18 अप्रैल 1859 को शिवपुरी नामक स्थान पर क्षिप्रा नदी के तट पर तात्या टोपे को फांसी दी गयी।
● शावर्स ने तात्या की फांसी का विरोध करते हुए कहा था कि – “आने वाली पीढियां पूछेगी की इस फांसी के लिए किसने अनुमति दी और किसने इसकी पुष्टि की।”
Revolution of 1857 in Rajasthan : प्रमुख कथन :-
लार्ड कैनिंग – विद्रोह मे राजाओ के सहयोग के बारे मे कहा की इन्होने तूफान मे तरंग अवरोध का कार्य किया, नहीं तो हमारी किश्ती बह जाती ।
जॉन लारेंस :- यदि विद्रोहियो मे एक भी योग्य नेता रहा होता तो हम सदा के लिए हार जाते ।
प्रिचार्ड ने पुस्तक “द म्यूटिनी इन राजस्थान” मे कहा – यदि अजमेर पर विद्रोहियो का अधिकार हो जाता तो राजस्थान के शासक उनके सहयोगी बन जाते ।
“दोस्तों यदि आपको हमारे द्वारा उपलब्ध करवाई गई पोस्ट पसंद आई हो तो उसे अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करना ।।। धन्यवाद”
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