Rajasthan ki Janjatiya : राजस्थान की जनजातियाँ
राजस्थान की जनजातियाँ ( Rajasthan ki Janjatiya ) : दोस्तो आज इस पोस्ट मे राजस्थान सामान्य ज्ञान के राजस्थान इतिहास मे राजस्थान की प्रमुख जनजातियाँ (Rjasthan GK, Rajasthan History, Rajasthan ki Janjatiyan) का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे । Rajasthan ki Janjatiya पोस्ट राजस्थान की सभी भर्ती परीक्षाओ जैसे REET 2021, Patwari Bharti 2020, Gramsevak 2021, LDC, RPSC, RBSE REET, School Lecturer, Sr. Teacher, TGT PGT Teacher, 3rd Grade Teacher आदि परीक्षाओ के लिए महत्त्वपूर्ण है । अगर पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करे ।
Rajasthan ki Janjatiya : राजस्थान की जनजातियाँ
Rajasthan ki Meena Janjati – मीणा
- जनजातियों में प्रथम स्थान , सवार्धिक जयपुर
- राजस्थान में सवार्धिक सम्पन और शिक्षित जनजाति है |
- मीणा दो भागों में बंटे हुये है
- 1. चौकीदार 2. जमीनदार
- मीणा 24 खांपो में बटे हुये है |
- मुखियाओ को पंच पट्टेल कहते है |
- मीणाओ के कच्चे घर को टापरा या छपरा कहते है |
- मीणाओ का प्रिय पक्षी मोर है |
- मोरनी मांडणा कार्यक्रम सवार्धिक मीणाओ में प्रचलित है |
- मीणाओ का पवित्र ग्रंथ मीणा पुराण है जिसकी रचना मगन मुनी / मगर मुनी ने की थी |
- मीणा स्वंय की उत्पति मत्स्य भगवान से मानते है |
- तारा भांत व केरी भांत की ओठणी का सवार्धिक प्रचलन मीणाओ में है |
- मीणाओ के महिलाओ के गले का प्रमुख आभूषण खुंगाली व सीतारानी होता है |
- पाली व सिरोही के आस – पास के भू भाग को गोडवाडा कहा जाता है |
- गोडवाडा के मीणाओ के प्रमुख लोक देवता भूरिया बाबा है |
- मीणा जाति के लोग इनकी झूठी कसम नहीं खाते |
Rajasthan me Bhil Janjati – भील
-
- जनजातियों में दूसरा स्थान , सवार्धिक उदयपुर
- भील का शब्दिक अर्थ तीर चलाने वाला
- कर्नल टॉड ने भीलो को वनपुत्र कहा
- यह राजस्थान के आदिम ( प्राचीन ) जनजाति है |
- भीलो के प्रमुख मेले —
- घोटिया अम्बा – बांसवाड़ा
- बेणेश्वर धाम – डूंगरपुर
- धुलेव गाँव – उदयपुर
- रणघोष — फाइरे – फाइरे
- घर — कू
- बहुत से झोपड़े — पाल
- पाल का मुखिया — पालकी
- तंग धोती — ठेपाड़ा
- ठीली धोती — खोयतू
- सिर का साफा — पोत्या
- विवाह का साफा — लीला मोरीया
- वैवाहिक देवी — भराड़ी
- पथ रक्षक देवी — पथवारी
- भील क्षेत्र — भोमट या मगरा
- मृत्यु भोज — लोकाई या कांधिया
- चीमाता , दजिया , झूमिंग , वालरा — कृषि के प्रकार
- गैर , गंवरी , राई , नेजा , युध्द , ठिचकी , हाथीमना — नृत्यों के प्रकार
- प्रमुख पेय पदार्थ — ताड़ी / महुड़ी , भीलो का सोमरस कहते है और यह महुवा के फूल से बनती है |
- भीलो का पवित्र वृक्ष — महुवा , भीलो का कल्पवृक्ष कहते है |
- कांडी ( तीर चलाने वाला ) शब्द — अपमान सूचक मानते है
- पाडा ( शक्ति शाली ) शब्द — सम्मानसूचक मानते है
- भीलो की महिलाओ के अधोवस्त्र को कछाबु या अंगोछा कहते है |
- माणिक्य लाल आदिम जाति शोध संस्थान – उदयपुर , भीलो की संस्कृति बचाये रखने का कार्य करती है |
- नाता प्रथा , छेड़ा प्रथा , झगड़ा प्रथा , मौताणा व डाकण प्रथा का सवार्धिक प्रचलन भी इसी जनजाति में है |
गरासिया – Garasia Rajasthani janjati
- जनजातियों में तीसरा स्थान , सवार्धिक सिरोही
- ये जनजाति स्वंय को चौहान राजपूतो का वंशज मानती है |
- तथा ये जनजाति स्वंय की उत्पति माउन्ट आबू के अग्नि कुण्ड से मानती है |
- इस जनजाति का सबसे पवित्र तीर्थस्थल माउन्ट आबू की नक्की झील है |
- गरबा , वालर , घुमर इस जनजाति के प्रसिध्द नृत्य है |
- यदि कोई भील पुरुष गरासिया स्त्री से विवाह क्र ले तो यह ” गमेती गरासिया ” कहलाता है |
- इस जनजाति में मुत्यु के 12 वे दिन बाद दाह संस्कार होता है | तथा इस जनजाति में किसी समानजनक व्यक्ति के याद में बनाया गया स्थल ” हुरे ” कहलाता है |
- इस जनजाति में मोर व बंदर का मांस लोक प्रिय है |
Rajasthan Sahriyan Jan Jati – सहरियां
- सहरियां सवार्धिक किशनगंज व शाहबाद तहसील , बांरा में
- इस जनजाति का गांव सहरोल व मुखिया कोतवाल कहलाता है |
- राज्य सरकार ने इस जाति कॉम आदिम अर्थात पिछड़ी हुई जनजाति घोषित कर रखा है |
- ये राजस्थान की सबसे शर्मीली जनजाति है तथा भीख नहीं मांगतीं है |
- इसलिये राज्य सरकार ने ” सहरिया विकास कार्यक्रम ” चला रखा है |
- जेष्ट की अमावस्या को लगने वाला ” सीताबाड़ी का मेला ” सहरिया जनजाति का कुम्भ कहलाता है |
- यह जनजाति इसी मेले में अपना जीवन साथी चुनती है |
Rajasthan me Kalbeliya Janjati -कालबेलिया
- सवार्धिक — अजमेर
- इस जनजाति को सपेरा भी कहा जाता है |
- पुरुषो का प्रमुख व्यवसाय सांप पकड़ना होता है तथा प्रमुख वाध्य यंत्र पुंगी या बीन होता है |
- इस जनजाति में कन्या वध का सवार्धिक प्रचलन रहा
- इस जनजाति में महिलाए नृत्य कला में पारगंत होती है |
- इण्डोणी , पणिहारी , शंकरिया व बंगड़िया इस जनजाति के प्रमुख नृत्य है |
- कंचन , कमली , राजकी , गुलाबो सपेरा इस जनजाति की प्रमुख नृत्यागंना है |
- 2010 में गुलाबो ने कालबेलिया नृत्य को यूनेस्को की विश्व की सूची में सामिल कराया है |
कंजर जनजाति – kanjar Rajasthani janjati
- सवार्धिक हाड़ौती , जिला – कोटा
- प्रमुख विशेषता – सवार्धिक बोलती है |
- प्रमुख व्यवसाय – चोरी करना
- चौथ माता व हनुमानजी के भक्त होते है |
- चोरी करने से पहले मंदिर में जाकर एक रस्म अदा करते है जिसे ” पांति (हिस्सा )मांगना कहा जाता है |
- हाकिम राजा का प्याला लेकर ये झूठी कसम नहीं कहते | तथा हनुमानजी की झूठी कसम नहीं खाते
- ये मरे हुये व्यक्ति के मुँह में शराब डालते है |
- इस समुदाय में पत्नियों की अदला बदली चलती है | इसलिये इन्हे ” अाटिया – साटिया ” भी कहते है |
- कंजर जाति की कुंवारी लड़कियों के द्वारा चकरी नृत्य किया जाता है |
- इस जनजाति के घरो में पीछे की दिशा में खिड़किया में दरवाजे नहीं होते है | पुलिस पकड़ने आती है तो ये पीछे से भाग जाते है |
कथोड़ी जनजाति – Kathodi Rajasthani janjati
- सवार्धिक सागवाड़ा तहसील जिला , उदयपुर
- ये जनजाति मुलतयः महाराष्ट्र की है |
- इस जनजाति की महिलाये मराठी अंदाज में साड़ी पहनती है | जिसे फड़का कहा जाता है |
- इस जनजाति के पुरुषो का प्रमुख व्यवसाय खैर के तनो से हांड़ी प्रणाली द्वारा कत्था तैयार करना होता है |
सांसी जनजाति – Sansi Rajasthani janjati
- सवार्धिक भरतपुर
- ये जनजाति दो भागो में बटी हुई है
- बीजा
- माला
- ये जनजाति अपने विवाद का निपटारा हरिजनों से करती है |
डामोर जनजाति – Damore Rajasthani janjati
- सवार्धिक डूंगरपुर व बांसवाड़ा
- इस जनजाति में पुरुष भी महिलाओ के भांति गहने पहनते है |
- तथा इस जनजाति में पंचायत के मुखिया को ” मुखी ” कहते है |
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