कर्ता कारक प्रथमा विभक्ति
कर्ता कारक प्रथमा विभक्ति ( हिन्दी व संस्कृत व्याकरण कारक व विभक्ति ) : दोस्तो आज इस पोस्ट मे कारक व विभक्ति के कर्ता कारक प्रथमा विभक्ति टॉपिक का विस्तारपूर्वक अध्ययन करेंगे । यह पोस्ट सभी शिक्षक भर्ती परीक्षा व्याख्याता (School Lecturer), द्वितीय श्रेणी अध्यापक (2nd Grade Teacher), REET 2021, RPSC, RBSE REET, School Lecturer, Sr. Teacher, TGT PGT Teacher, 3rd Grade Teacher आदि परीक्षाओ के लिए महत्त्वपूर्ण है । अगर पोस्ट पसंद आए तो अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करे ।
कारक-प्रकरणम् – ‘कृ’ धातु में ‘ण्वुल्’ प्रत्यय के योग से कारक शब्द बनता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है—करने वाला।
परिभाषा-‘क्रियाजनकत्वं कारकम्’ क्रिया का जनक कारक होता है ।
क्रियान्ववित्वं कारकत्वम – क्रिया के साथ जिसका सीधा अथवा परम्परा से सम्बन्ध होता है, वह ‘कारक’ कहा जाता है।
- कर्ता कर्म च करणं च सम्प्रदानं तथैव च।
- अपादानाधिकरणमित्याहुः कारकाणिषट्।।
इस प्रकार ‘कारकों की संख्या’ छः होती है। कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण – ये छः कारक कहे गये हैं।
संस्कृत में प्रथमा से सप्तमी तक सात विभक्तियाँ होती हैं। ये सात विभक्तियाँ ही कारक का रूप धारण करती हैं। सम्बोधन विभक्ति को प्रथमा विभक्ति के ही अन्तर्गत गिना जाता है। क्रिया से सीधा सम्बन्ध रखने वाले शब्दों को ही कारक माना गया है। षष्ठी विभक्ति का क्रिया से सीधा सम्बन्ध नहीं होता है, अतः ‘सम्बन्ध’ कारक को कारक नहीं। माना गया है। इस प्रकार संस्कृत में कारक छः ही होते हैं। तथा विभक्तियाँ सात होती हैं।
कारकों में प्रयुक्त विभक्तियों तथा उनके चिह्नों का विवरण इस प्रकार है-
# | विभक्ति/कारक | विवरण | चिन्ह(परसर्ग ) | सूत्र |
1. | कर्त्तरि प्रथमा | कर्ता में प्रथमा विभक्ति | ने | स्वतंत्र कर्त्ता |
2. | कर्मणि द्वितीया | कर्म में द्वितीया विभक्ति | को | कर्तुरीप्सिततम् कर्मः |
3. | करणे तृतीया | करण में तृतीय विभक्ति | से, द्वारा (साधन के लिए) | साधकतम् करणम् |
4. | सम्प्रदाने चतुर्थी | सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति | को, के लिए | कमर्णा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम् |
5. | अपादाने पंचमी | अपादान में पंचमी विभक्ति | से (जुदाई के लिए) | ध्रुवमपायेऽपादानम् |
6. | सम्बन्धे षष्ठी | संबंध में षष्ठी विभक्ति और | का-के-की, ना-ने-नी, रा-रे-री | षष्ठीशेशे |
7. | अधिकरणे सप्तमी | अधिकरण में सप्तमी विभक्ति | में, पर | आधारोधिकरणम् |
1. कर्ता कारक (प्रथमा विभक्ति) Sanskrit Vyakaran Karak Vibhakti –
किसी भी क्रिया को स्वतन्त्रतापूर्वक करने वाले को कर्ता कहते हैं।
- जो क्रिया के करने में स्वतन्त्र होता है, वह कर्ता कहा जाता है। (स्वतन्त्र कर्ता) और कर्ता में प्रथमा विभक्ति होती है।
- कर्मवाच्य में कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है।
- सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति होती है।
- किसी संज्ञा आदि शब्द के (प्रातिपदकस्य) अर्थ, लिङ्ग, परिमाण और वचन प्रकट करने के लिए प्रथमा विभक्ति का प्रयोग किया जाता है।
- इति’ शब्द के प्रयोग में प्रथमा होती है।
वाक्य में कर्ता की स्थिति के अनुसार संस्कृत में वाक्ये तीन प्रकार के होते हैं
- कर्तृवाच्य
- कर्मवाच्य
- भाववाच्य
(i) कर्तृवाच्यः – जब वाक्य में कर्ता की प्रधानता होती है, तो कर्ता में सदैव प्रथमा विभक्ति ही होती है।
(ii) कर्मवाच्यः – वाक्य में कर्म की प्रधानता होने पर कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है और कर्ता में तृतीया।
(iii) भाववाच्यः – वाक्य में भाव (क्रियातत्त्व) की प्रधानता होती है और कर्म नहीं होता है। कर्ता में सदैव तृतीया विभक्ति और क्रिया (आत्मनेपदी) प्रथम पुरुष एकवचन की प्रयुक्त होती है।
वाक्य में कर्ता के अनुसार ही क्रिया का प्रयोग किया जाता है अर्थात् कर्ता जिस पुरुष और वचन का होता है, क्रिया भी उसी पुरुष व वचन की होती है।
पुरुष | एकवचन | द्विवचन | वहुवचन |
प्रथम पुरुष | पठति | पठत: | पठन्ति |
मध्यम पुरुष | पठसि | पठथः | पठथ |
उत्तम पुरुष | पठामि | पठावः | पठामः |
कारक विभक्ति :- संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के बाद ‘ने, को, से, के लिए’, आदि जो चिह्न लगते हैं वे चिह्न कारक विभक्ति कहलाते हैं।
- हिन्दी भाषा मे कारको की संख्या – 8
- संस्कृत भाषा मे करको की संख्या – 6
कारक के भेद :-
- कर्ता ने
- कर्म को
- करण से, के साथ, के द्वारा
- संप्रदान के लिए, को
- अपादान से (पृथक)
- संबंध का, के, की
- अधिकरण में, पर
- संबोधन हे ! हरे !
विशेष :- कर्ता से अधिकरण तक विभक्ति चिह्न (परसर्ग) शब्दों के अंत में लगाए जाते हैं, किन्तु संबोधन कारक के चिह्न- हे, रे, आदि प्रायः शब्द से पूर्व लगाए जाते हैं।
- कर्ता कारक :-जिस रूप से क्रिया (कार्य) के करने वाले का बोध होता है वह ‘कर्ता’ कारक कहलाता है। इसका विभक्ति-चिह्न ‘ने’ है। इस ‘ ने ’ चिह्न का वर्तमानकाल और भविष्यकाल में प्रयोग नहीं होता है। इसका सकर्मक धातुओं के साथ भूतकाल में प्रयोग होता है।
जैसे :-
- लड़की ने खाना खाया ।
- लड़की स्कूल जाती है।
पहले वाक्य में क्रिया का कर्ता लड़की है। इसमें ‘ने’ कर्ता कारक का विभक्ति-चिह्न है। इस वाक्य में ‘खाया’ भूतकाल की क्रिया है। ‘ने’ का प्रयोग प्रायः भूतकाल में होता है। दूसरे वाक्य में वर्तमानकाल की क्रिया का कर्ता लड़की है। इसमें ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग नहीं हुआ है।
नोट :- (1) भूतकाल में अकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ भी ने परसर्ग (विभक्ति चिह्न) नहीं लगता है।
जैसे :- वह हँसा।
(2) वर्तमानकाल व भविष्यतकाल की सकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ ने परसर्ग का प्रयोग नहीं होता है।
जैसे :- वह फल खाता है। वह फल खाएगा।
(3) कभी-कभी कर्ता के साथ ‘को’ तथा ‘से’ का प्रयोग भी किया जाता है।
जैसे :-
- बालक को सो जाना चाहिए।
- सीता से पुस्तक पढ़ी गई।
- रोगी से चला भी नहीं जाता।
- उससे शब्द लिखा नहीं गया।
Sanskrit Grammar Online Test Quiz : https://rbsereet.com/sanskrit-vyakaran-online-test-quiz-15/